bakri palan kaise karen: भारत में बीते कुछ सालों में बकरी पालन (bakari palan) का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। कमाई के लिहाज से यह बहुत ही दमदार व्यवसाय है। गाय-भैंस की तुलना में इसे बहुत ही कम खर्च में किया जा सकता है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए बकरी पालन किसी वरदान से कम नहीं है। बकरी पालन (goat farming) को पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी बहुत आसानी से कर सकती हैं।
वर्ष 2019 में की गई गणना के अनुसार, बकरियों की संख्या में करीब 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्तमान में बकरियों की संख्या करीब 15 करोड़ तक पहुंच चुकी है।
बकरी पालन (goat farming in hindi) को विस्तार से जानेंगे। इस लेख आप अपने प्रश्न ‘बकरी पालन कैसे करें (bakri palan kaise karen?), इसकी पूरी जानकारी जान सकेंगे।
तो आइए सबसे पहले बकरी पालन पर एक नज़र डालते हैं।
भारत में सबसे अधिक बकरी पालन (bakaripalan) राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होता है।
बकरी पालन कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाली व्यवसाय है।
बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे छोटे किसान भी आसानी से कर सकते हैं।
हमारे देश के कुल पशुधन में बकरी पालन की 27.8 प्रतिशत है।
बकरी के दूध में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को स्वस्थ और फिट रखने में काफी मददगार होते हैं।
बकरी एक बहुपयोगी पशु है, इससे मांस, दूध, ऊन, खाद और औषधीय प्राप्त किया जा सकता है।
बकरी पालन व्यवसाय को ‘गरीबों का व्यवसाय’ भी कहा जाता है।
क्यों करें बकरी पालन (bakri palan)
गाय-भैंस की तुलना में बकरी पालन आसान और सस्ता होता है। इस व्यवसाय को कम स्थान और सीमित देखभाल करके अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। बाजार में इसके मांग अधिक है। बकरी को बेचने में किसानों को कोई असुविधा नहीं होती है। यह बाजार में बहुत जल्दी और सुगमता से बिक जाती है।
इस व्यवसाय को छोटे आकार यानी 4-5 बकरियों से भी शुरू करिया जा सकता है। इससे बहुत ही कम समय (12-15 महीने) में लाभ मिलने लगता है। इसके लिए सरकारी स्तर पर कई प्रकार के अनुदान और प्रशिक्षण दिए जाते हैं।
बकरी पालन के लिए आवश्यक जलवायु
बकरी पालन (bakaripalan) के लिए शुष्क और पहाड़ी क्षेत्र की आवश्यकता पड़ती है। अधिक बारिश वाले स्थानों पर बकरी पालन करने में असुविधा होती है। अधिक गर्मी वाले इलाके में भी बकरी पालन से बचना चाहिए।
बकरियों की उन्नत नस्लें
विश्व में बकरियों की कुल 100 से भी अधिक नस्लें पाई जाती है। जिनमें से 20 भारत की नस्लें हैं। यहां की नस्लें विदेशी नस्लों से अधिक मजबूत होती हैं। जो मुख्यतः मांस उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त होती है। लेकिन विदेशी नस्लों का वजन अधिक होता है। विदेशी नस्लें ऊन और दूध के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है।
बकरियों की देसी नस्लें
(1) ब्लैक बंगाल (2) बारबरी (barbari bakri) (3) बीटल (4) जमुनापारी (5) सिरोही (sirohi bakri) (6) जाकराना (7) आसामहील (8) गंजम (9) मालावारी (10) ओसमानाबादी (11) सुरती (12) मारवाड़ी (13) चेगु (14) तोतापरी (totapuri goat) (15) कश्मीरी इत्यादि।
बकरियों की विदेशी नस्लें
(1) सानेन (2) अल्पाइन (3) टोगेनवर्ग (4) एग्लोनूबियन (5) अंगोरा (6) वियाना (7) जेरेबी (8) ग्रानाडा (9) माल्टीज (10) गोल्डेन गुरेंसी इत्यादि।
बकरियों का आहार प्रबंधन
बकरी आमतौर पर जंगल झाड़ी और खेत-मैदान में घूम-फिरकर अपना पेट भर लेती हैं। इन्हें गाय की तरह 24 घंटे बांधकर नहीं रखा जा सकता है। बारबारी और सिरोही नस्ल की बकरी को बांधकर पाला जा सकता है।
बकरियों को 3 तरह से पाला जा सकता है।
१-चराकर पालना
इस विधि में बकरियों को पालना आसान है। लेकिन व्यावसायिक दृष्टि से यह लाभकारी नहीं हो सकता क्योंकि इससे बकरियों के वजन में अधिक वृद्धि नहीं होती है। इस कारण बाजार में इनकी कीमत कम मिलती है। जंगली और पहाड़ी इलाके जहां खेती योग्य भूमि कम है वहां इस विधि से बकरी पाली जा सकती है।
२-खूंटे पर खिलाकर पालना
यह विधि बारबरी और सिरोही नस्ल की बकरियों को पालने के लिए अपनाई जा सकती है। दूसरे नस्ल की बकरियों को इस विधि से पालना आसान नहीं है।
३-चराकर और खूंटे पर खिलाकर पालना
इस विधि में बकरियों को 7-8 घंटा चरने दिया जाता है इसके बाद बाड़े में लाकर चारा और पत्तियों और कुछ दाने का मिश्रण भी खिलाया जाता है। यह बकरी पालन की उचित विधि है। इसमें बकरियां स्वस्थ रहती है। साथ ही वजन में भी काफी वृद्धि होती है। इससे बाजार में मूल्य ज्यादा मिलता है। इसलिए कारोबार की वृद्धि से यह विधि अधिक अपनाई जाती है। अच्छा यह होगा कि आप इस विधि को ही अपनाएं। जमुनापारी, ब्लैक बंगाल और बीटल इस विधि के लिए उपयुक्त नस्ल है।
ऐसे करें बकरियों के लिए आवास प्रबंधन
बकरी पालन (bakaripalan) के लिए बाड़े की आवश्यकता होती है। आमतौर से 10 बकरी के लिए बाड़े की चौड़ाई 15-20 फीट तथा ऊंचाई 10-15 फीट होती है। बकरी की संख्या के अनुसार इसकी लम्बाई घटाई-बढ़ाई जा सकती है।
प्रति बकरी के लिए 12 वर्गफीट स्थान को जरूरत होती है। बकरा के रहने के लिए 7 × 5 फीट जबकि गाभिन बकरी के लिए 5 × 5 फीट स्थान जरूरी है।
100 बकरियों को रखने के लिए 60 × 20 फीट का बाड़ा बनवाएं और इससे दोगुनी जगह साथ में रखें जिसमें बकरियां स्वेच्छानुसार घूम-घूमकर बाहर व भीतर रख सकें। इस खाली जगह को तार की जाली से घेर दें।
👉बाड़े के पास छायादार चारा वृक्ष जैसे- शीशम, करंज, कटहल,बबूल आदि पेंड़ लगा सकते हैं, जो गर्मी के दिनों में बाड़े को ठंडा रखेगा और साथ ही समय-समय पर चारे की आवश्यकता को भी पूरा करेगा।
बकरियों की प्रजनन के लिए आवश्यक जानकारी
- बकरियों के बच्चे करीब 8-10 माह की उम्र में व्यस्क हो जाते हैं। अगर शारीरिक वजन ठीक हो तो मादा मेमना (पाठी) को 8-10 माह की उम्र में गर्भधारण कराना चाहिए।
- बकरियां सालभर गर्म होती है लेकिन अधिकांश बकरियां मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तथा मध्य, मई से मध्य जून के बीच गर्म होती है।
- ऋतुकाल शुरू होने के 10-12 तथा 24-26 घंटों के बीच 2 बार पाल (सिमेन) दिलाने से गर्भ ठहरने की संभावना 90 प्रतिशत से अधिक रहती है। इसे आप इस प्रकार समझ सकते हैं कि अगर बकरी सुबह में गर्म हुई हो तब उसे उसी दिन शाम और दूसरे दिन सुबह में गर्भ धारण कराएं। अगर ये शाम को गर्म हुई हो तो दूसरे दिन सुबह तथा शाम को गर्भधारण कराएं।
- बकरी पालकों का बकरी ऋतुकाल (गर्म होने) के लक्षण के विषय में जानकारी रखना चाहिए।
बकरियों के गर्म होने के लक्षण
विशेष प्रकार की आवाज निकालना।
लगातार पूंछ हिलाना।
चरने के समय इधर-उधर भागना।
नर के नजदीक जाकर पूंछ हिलाना तथा विशेष प्रकार की आवाज निकालना।
घबराई हुई सी रहना।
दूध उत्पादन में कमी।
भगोष्ठ में सूजन और योनि द्वार का लाल होना।
योनि से साफ पतला लेसेदार द्रव्य निकलना तथा।
नर का मादा के ऊपर चढ़ना या मादा का नर के उपर चढ़ना।
इन लक्षणों को जानने पर ही समय से गर्म बकरी को पाल(सिमेन) दिलाया जा सकता है। बच्चा पैदा करने के 30-32 दिनों के बाद ही गर्म होने पर बकरी को पाल दिलाएं। सामान्यतः 20-25 बकरियों के लिए एक बकरा काफी है।
गर्भवती बकरी की देख-रेख
गर्भवती बकरियों को गर्भावस्था के अंतिम डेढ़ महीने में अधिक सुपाच्य और पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। गर्भवती बकरी के पेट में पल रहे भ्रूण का विकास काफी तेजी से होने लगता है। इस समय गर्भवती बकरी को पोषण और रख-रखाव पर ध्यान देने से स्वस्थ बच्चा पैदा होगा और बकरी अधिक मात्रा में दूध देगी जिससे इनके बच्चों में शारीरिक विकास अच्छा होगा।
बकरियों में होने वाले रोग और उसका प्रबंधन
अन्य पशुओं की तरह बकरियों भी बीमार पड़ती है। बीमार पड़ने पर मृत्यु भी हो सकती है। बकरियों में मृत्यु दर कमकर बकरी पालन से होने वाली आय में काफी वृद्धि की जा सकती है। अतः बीमारी की अवस्था में पशुचिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
बकरियों में होने वाले रोग
परजीवी रोग
बकरी में परजीवी से उत्पन्न रोग अधिक होते है। परजीवी रोग से काफी हानि पहुंचती है। बकरी को आन्तरिक परजीवी से अधिकतर हानि होती है। इसमें गोल कृमि, फीता कृमि, फ्लूक, एमफिस्टोम और प्रोटोजोआ प्रमुख है।
इसके प्रकोप के कारण उत्पादन में कमी, वजन कम होना, दस्त लगना, शरीर में खून की कमी होती है। शरीर का बाल तथा चमड़ा रूखा-रूखा दिखता है। इसके कारण पेट भी फूल सकता है तथा जबड़े के नीचे हल्का सुजन भी हो सकता है। इसे आक्रमण से बचाव तथा उपचार के लिए नियमित रूप से बकरी के मल का जांच कराकर कृमि नासक दवा (नीलवर्म, पानाकिओर, एलवेन्डाजोल, वेनमीन्थ, डिस्टोडीन आदि) देनी चाहिए।
👉कृमिनाशक दवा तीन माह के अन्तराल खासकर वर्षा शुरू होने के पहले और बरसात के बाद आवश्य दें।
सर्दी जुकाम (न्यूमोनिया)
यह रोग कीटाणु, सर्दी लगने या प्रतिकूल वातावरण के कारण हो सकता है। इस रोग से पीड़ित बकरी को बुखार रहता है। सांस लेने में तकलीफ होती है और नाक से पानी निकलता रहता है। कभी-कभी न्यूमोनिया के साथ दस्त भी होता है। सर्दी-जुकाम की बिमारी बच्चे में ज्यादा होती है। इससे अधिक बच्चे मरते हैं।
👉इस रोग से ग्रसित बकरी या बच्चों को ठंड से बचाव करें। पशुचिकित्सक की सलाह पर उचित एंटीबायोटिक दवा दें। इससे न्यूमोनिया ठीक हो जाता है।
पतला दस्त (छेरा रोग)
यह खासकर पेट की कृमि या अधिक हरा चारा खाने से हो सकता है। यह कीटाणु (बैक्टेरिया) के कारण भी होता है। इससे पतला दस्त होता है। खून मिला हुआ दस्त हो सकता है।
👉सर्वप्रथम उचित दस्त निरोधक दवा ( मेट्रान, केओलिन, आरीप्रीम, नेवलोन आदि) का प्रयोग कर दस्त को रोकना जरूरी है। दस्त वाले पशु को पानी में ग्लूकोज तथा नमक मिलाकर अवश्य पिलाते रहना चाहिए।
👉पतला दस्त ठीक होने के बाद मल की जांच कराकर उचित कृमिनाशक दवा दें।
खुरपका और मुंहपका
यह संक्रामक रोग है। इस रोग में जीभ, ओंठ, तालु और खुर में फफोले पड़ जाते हैं। बकरी को तेज बुखार हो सकता है। मुंह से लार गिरता है तथा बकरी लंगड़ाकर चलती है।
सावधानियां
बीमार बकरी को अलग रखें।
मुंह तथा खुर को लाल पोटास (पोटाशियम परमेंगनेट) के घोल से साफ करें।
मुंह पर सुहागा और गंधक के मिश्रण का लेप लगा सकते है।
आवश्यकता पड़ने पर एण्टीवायोटिक दवा का भी उपयोग कर सकते है।
👉इस रोग से बचाव के लिए मई-जून माह में एफएमडी का टीका लगवा लें।
आंत ज्वर (इन्टेरोटोक्सिमिया)
इस बीमारी में खाने की रूचि कम हो जाती है। पेट में दर्द होता है, दांत पीसना भी सम्भव है, पतला दस्त तथा दस्त के साथ खून आ सकता है।
👉दस्त होने पर नमक तथा चीनी मिला हुआ पानी देते रहें। इस बीमारी से बचाव के लिए इन्टेरोटोक्सिमिया का टीका बरसात शुरू होने के पहले लगवा लें।
पीपीआर
यह बकरियों में विषाणुओं से फैलने वाला रोग है। इससे काफी संख्या में बकरियां ग्रसित हो सकती हैं। छेरा के साथ-साथ न्यूमोनिया के लक्षण दिखाई देना, ग्रसित बकरियोें का धूप में खड़ा रहना तत्काल चिकित्सा नहीं होने पर ग्रसित बकरियों और बच्चों में मृत्यु हो जाना इसके लक्षण है। इस प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ने पर तत्काल पशुचिकित्सक की सलाह से इलाज़ कराएं।
👉पीपीआर रोग से बचाव हेतु इसका टीकाकरण अवश्य कराएं। सरकारी अस्पताल में यह टीका बहुत ही कम दाम में उपलब्ध होता है।
पेट फूलना
इस बीमारी में भूख कम लगती है, पेट फूल जाता है, पेट को बजाने पर ढोल के जैसा आवाज निकलता है।
👉इस बीमारी में टिमपाॅल पाउडर 15-20 ग्राम पानी में सानकर 3-3 घंटों पर दें। ब्लोटोसील दवा पिलाएं और एविल की गोली खिलाएं आप हींग मिलाकर तीसी का तेल भी पिला सकते हैं।
थनैला रोग
बकरी के थन में सूजन, दूध में खराबी तथा कभी-कभी बुखार आ जाना इस रोग के लक्षण है। दूध निकालने के बाद थन में पशुचिकित्सक की सलाह से दवा देनी चाहिए। थनैल वाले छीमी को छूने के बाद अच्छी तरह साबुन और डिटॉल से साफ कर लेना चाहिए।
ये तो थी बकरी पालन (goat farming in hindi) की बात। लेकिन आपको कृषि एवं मशीनीकरण, सरकारी योजनाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर भी कई महत्वपूर्ण जानकारी मिलेंगे, जिनको पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और दूसरों को भी इस लेख को शेयर सकते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें